Manglesh Dabral(मंगलेश डबराल) जीवन परिचय:-
मंगलेश डबराल (Manglesh Dabral) का जन्म 16 मई 1948 को उत्तराखंड के टिहरी जिले के काफलपानी गांव हुआ था. मंगलेश डबराल(Manglesh Dabral) ने देहरादून से पढ़ाई की तथा उसके बाद वह दिल्ली चले गए तथा वही वह पत्रकारिता के पेशे से जुड़ गए. पहली बार उन्होंने साप्ताहिक समाचार पत्र "प्रतिपक्ष" में काम किया, लेकिन कुछ समय बाद ही वह इलाहाबाद से प्रकाशित हिंदी दैनिक ‘अमृत प्रभात’ समाचार पत्र में काम करने इलाहाबाद चले गए. वहाँ उन्हें रविवारीय साहित्यिक परिशिष्ट के सम्पादन का अवसर मिला और वहीं से मंगलेश डबराल(Manglesh Dabral) जी ने पत्रकारिता एक नई मिसाल निर्मित की. 1981 में उनका पहला संग्रह 'पहाड़ पर लालटेन' प्रकाशित हुआ. उन्होंने वर्ष 1983 में 'जनसत्ता' में साहित्य संपादक का पद सँभाला। कुछ समय 'सहारा समय' में संपादन कार्य करने के बाद वह नेशनल बुक ट्रस्ट के साथ भी वह जुड़े रहे जुड़े रहे. मंगलेश डबराल(Manglesh Dabral) जी की कविता, गद्य और अनुवाद के अलावा संगीत, सिनेमा और यात्रा साहित्य में भी गहरी दिलचस्पी थी. वे हिंदी के अकेले कवि थे जिनकी दोस्ती तमाम भारतीय भाषाओं के अलावा विदेशी भाषाओँ के कवियों के साथ भी थी और यही कारण था जिसकी वजह से उन्होंने विश्व और भारतीय भाषाओं की तमाम कविताओं के अनुवाद के जरिये हिंदी के पाठकों को समृद्ध किया. वर्ष 2000 में साहित्य अकादमी द्वारा मंगलेश डबराल(Manglesh Dabral) को साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया. मंगलेश डबराल(Manglesh Dabral) के पाँच काव्य संग्रह 'पहाड़ पर लालटेन', 'घर का रास्ता', 'हम जो देखते हैं', 'आवाज भी एक जगह है' और 'नये युग में शत्रु' बहुत प्रसिद्ध हैं । इसके अतिरिक्त मंगलेश डबराल(Manglesh Dabral) के दो गद्य संग्रह "लेखक की रोटी" और "कवि का अकेलापन" ने भी खूब प्रसिद्धि पायी । 9 दिसंबर 2020 को 72 वर्ष की उम्र में कोरोना के कारण मंगलेश डबराल(Manglesh Dabral) जी का निधन हो गया.
मंगलेश डबराल(Manglesh Dabral) के बारे में मुख्य बिंदु:-
जन्म - 16 मई, 1948
जन्म स्थान - काफलपानी गांव, टिहरी गढ़वाल
मृत्यु - 9 दिसम्बर, 2020 ( कोरोना के कारण )
काव्य संग्रह -
- पहाड़ पर लालटेन
- घर का रास्ता
- हम जो देखते हैं
- आवाज भी एक जगह हैं
- नये युग में शत्रु
गद्य संग्रह -
- लेखक की रोटी
- कवि का अकेलापन
यात्रावृत्तांत -
- एक बार आयोवा
कवितायें -
- गुजरात के मृतक का बयान
- आदिवासी
- बची हुई जगहें
- नया बैंक
- गुलामी
- जापान: दो तस्वीरें
- औरत
- निकोटिन
- हमारे देवता
- गुड़हल
- बच्चों के लिये एक चिठ्ठी
- पिता का चश्मा
- माँ के संस्कार
- मदर डेयरी
- मोबाइल
मंगलेश डबराल को ‘‘ साहित्य अकादमी ’’ पुरस्कार 2000 में ‘‘ हम जो देखते हैं ’’ के लिए दिया गया था
प्रमुख कविता - संगतकार